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दशक 39 | प्रारंभ | दशक 41

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दशक ४०

तदनु नन्दममन्दशुभास्पदं नृपपुरीं करदानकृते गतम्।
समवलोक्य जगाद भवत्पिता विदितकंससहायजनोद्यम: ॥१॥

तदनु नन्दम्- तदनन्तर नन्द को
अमन्द-शुभ-आस्पदम् (जो) अमन्द मंगल के आश्रय हैं (उनको)
नृप-पुरीम् राजधानी को
कर-दान-कृते गतम् कर देने के लिये गये
समवलोक्य (उनसे) मिल कर
जगाद भवत्-पिता कहा आपके पिता ने
विदित-कंस- (जिन्हें) मालूम था कंस के
सहायजन-उद्यम: सहायको की चेष्टाओं के बारे में

तदनन्तर, अमन्द मंगलों के आश्रय नन्द, कर देने के लिये राजधानी गये। वहां उनकी भेंट आपके पिता वसुदेव से हुई। कंस और उसके सहायकों की गतिविधियों से परिचित वसुदेव ने नन्द से कहा -

अयि सखे तव बालकजन्म मां सुखयतेऽद्य निजात्मजजन्मवत् ।
इति भवत्पितृतां व्रजनायके समधिरोप्य शशंस तमादरात् ॥२॥

अयि सखे अयि सखे!
तव बालक जन्म आपके पुत्र का जन्म
मां-सुखयते-अद्य मुझे सुख दे रहा है आज
निज-आत्मज-जन्मवत् अपने ही पुत्र के जन्म के समान
इति भवत्-पितृतां इस प्रकार आपके पितृत्व को
व्रजनायके समधिरोप्य व्रजेश्वर (नन्द) पर आरोपित कर के
शशंस तम्-आदरात् कहा उनको आदर पूर्वक

हे सखे! आपके पुत्र का जन्म मुझे उसी प्रकार सुख दे रहा है मानो मेरे अपने पुत्र का जन्म हुआ हो। इस प्रकार कुशलता से आपका पितृत्व नन्द पर आरोपित कर के उनसे आदर पूर्वक कहा -

इह च सन्त्यनिमित्तशतानि ते कटकसीम्नि ततो लघु गम्यताम् ।
इति च तद्वचसा व्रजनायको भवदपायभिया द्रुतमाययौ ॥३॥

इह च सन्ति- और यहां पर हो रहे हैं
अनिमित्त-शतानि अपशकुन सैंकडों
ते कटक-सीम्नि आपके निवास की सीमा में
तत: लघु गम्यताम् इस लिये जल्दी चले जाइये
इति च तत्-वचसा और इस प्रकार से उनके कहने से
व्रजनायक: व्रजनायक (नन्द)
भवत्-अपाय-भिया आपके अमंगल के भय से
द्रुतम्-आययौ तुरन्त ही लौट आये

आपके नगर की सीमा पर सैंकडों अपशकुन हो रहे हैं , इस लिये आप शीघ्र ही चले जाइये।' उनके इस प्रकार कहने पर व्रजनायक नन्द तुरन्त ही लौट आये।

अवसरे खलु तत्र च काचन व्रजपदे मधुराकृतिरङ्गना ।
तरलषट्पदलालितकुन्तला कपटपोतक ते निकटं गता ॥४॥

अवसरे खलु तत्र च और उस समय ही ठीक वहां पर
काचन व्रजपदे कोई, गोकुल में
मधुर-आकृति:-अङ्गना सुन्दर स्वरूप वाली युवती
तरल-षट्पद- मण्डराते हुए भौंरों से
लालित-कुन्तला सुसज्जित केशों वाली
कपट-पोतक हे माया से बालक (स्वरूप)
ते निकटं गता आपके निकट गयी

हे माया से बाल स्वरूपधारी! ठीक उसी समय गोकुल में, कोई सुन्दर स्वरूप वाली युवती जिसके सुसज्जित केशों पर भंवरे मण्डरा रहे थे, आपके पास गई।

सपदि सा हृतबालकचेतना निशिचरान्वयजा किल पूतना ।
व्रजवधूष्विह केयमिति क्षणं विमृशतीषु भवन्तमुपाददे ॥५॥

सपदि सा तुरन्त ही उसने
हृत-बालक-चेतना हरण करने वाली बालकों के प्राणों को
निशिचर-अन्वय-जा राक्षसों के कुल में उत्पन्न हुई
किल पूतना निश्चय ही पूतना ने
व्रज-वधूषु-इह व्रज गोपियों के बीच
का-इयम्-इति कौन है यह इस प्रकार
क्षणं विमृशतीषु क्षण भर के लिये विचार करती हुई में से
भवन्तम्-उपाददे आपको उठा लिया

राक्षसों के कुल में उत्पन्न हुई, बालकों के प्राणों को हरने वाली उस पूतना ने, व्रज गोपियों के बीच से, आपको तुरन्त ही उठा लिया। ब्रज गोपियां विचार ही करती रह गईं कि 'यह सुन्दरी कौन है?'

ललितभावविलासहृतात्मभिर्युवतिभि: प्रतिरोद्धुमपारिता ।
स्तनमसौ भवनान्तनिषेदुषी प्रददुषी भवते कपटात्मने ॥६॥

ललित-भाव-विलास- मनोहर हाव भाव के विलास से
हृत-आत्मभि:-युवतिभि: खोये हुए मन वाली युवतियों के द्वारा
प्रतिरोद्धुम्-अपारिता रोके जाने में असमर्थ (हो जाने पर)
स्तनम्-असौ स्तन को इसने (पूतना ने)
भवन-अन्त-निषेदुषी भवन के बीच में बैठ कर
प्रददुषी भवते दे दिया आपको
कपट-आत्मने कपट बाल रूप धारी

पूतना के मनोहर हाव भावों के विलास से मोहित हुई युवतियां उसको रोकने मे असमर्थ हो गईं। हे कपट बाल रूप धारी! तब उसने भवन के बीच में बैठ कर अपको मुंह में अपना स्तन दे दिया।

समधिरुह्य तदङ्कमशङ्कितस्त्वमथ बालकलोपनरोषित: ।
महदिवाम्रफलं कुचमण्डलं प्रतिचुचूषिथ दुर्विषदूषितम् ॥७॥

समधिरुह्य तत्-अङ्कम्- चढ कर उसकी गोद में
अशङ्कित:-त्वम्-अथ अशङ्कित भाव से आपने तब
बालक-लोपन-रोषित: बालकों को मारने के (कारण) क्रोधित
महत्-इव-आम्र-फलम् बडे मानो आम के फलों के समान
कुच-मण्डलं प्रति-चुचूषिथ स्तन मण्डलों को भली प्रकार चूसा
दुर्विष-दूषितम् (जो) घोर विष से दूषित था

बालकों का वध करने वाली पूतना के प्रति अत्यधिक क्रोध से भरे आपने उसकी गोद में निशङ्क भाव से चढ कर, बडे बडे आमों के फलों के समान उसके स्तन मण्डलों को चूसा, जो घोर विष से लिप्त होने के कारण दूषित थे।

असुभिरेव समं धयति त्वयि स्तनमसौ स्तनितोपमनिस्वना ।
निरपतद्भयदायि निजं वपु: प्रतिगता प्रविसार्य भुजावुभौ ॥८॥

असुभि:-एव समम् प्राणों ही के साथ
धयति त्वयि स्तनम्- पीते हुए आपके उसके स्तन को
असौ स्तनित-उपम-निस्वना वह मेघगर्जन के समान चीत्कार करती हुई
निरपतत्- गिर पडी
भयदायि निजं वपु: भयानक अपने शरीर को
प्रतिगता प्रकट करती हुई
प्रविसार्य भुजौ-उभौ फैला कर दोनों बाहुओं को

उसके स्तनों के साथ साथ जब उसके प्राणों स्तनों को आपने पीया, तब वह मेघगर्जना के समान चीत्कार करती हुई, अपने भयानक शरीर को प्रकट करती हुई दोनो भुजाएं फैला कर गिर पडी।

भयदघोषणभीषणविग्रहश्रवणदर्शनमोहितवल्लवे ।
व्रजपदे तदुर:स्थलखेलनं ननु भवन्तमगृह्णत गोपिका: ।।९॥

भयद-घोषण- भयानक चीत्कार (को)
भीषण-विग्रह- (और) भयानक आकार (को)
श्रवण-दर्शन- सुन कर और देख कर
मोहित-वल्लवे आश्चर्यचकित हुए गोपों के
व्रजपदे और (पूरे) गोकुल के (हो जाने पर)
तत्-उदर:-स्थल- उसकी छाती पर
खेलनं ननु खेलते हुए भी
भवन्तम्-अगृह्णत आपको उठा लिया
गोपिका: गोपिकाओं ने

उसकी भयानक चीत्कार सुन कर और भयानक आकार देख कर गोप जन और पूरा गोकुल आश्चर्यचकित हो गया। उसकी छाती पर क्रीडा करते हुए आपको गोपिकाओं ने उठा लिया।

भुवनमङ्गलनामभिरेव ते युवतिभिर्बहुधा कृतरक्षण: ।
त्वमयि वातनिकेतननाथ मामगदयन् कुरु तावकसेवकम् ॥१०॥

भुवन-मङ्गल- हे भुवन मङ्गलकारी!
नामभि:-एव ते नामों से ही आपके
युवतिभि:-बहुधा युवतियों के द्वारा बहुत प्रकार से
कृतरक्षण: त्वम्-अयि किया गया रक्षित आपको अयि!
वातनिकेतननाथ हे वातनिकेतननाथ!
माम्-अगदयन् मुझको निरोग
कुरु तावक-सेवकम् करें (और) आपका सेवक (बना लें)

अयि भुवनमङ्गलकारी! युवतियों ने आप ही के मङ्गलकारी नामों से आपकी बहुत प्रकार से रक्षा की है। हे वातनिकेतननाथ! मेरे रोगों को दूर करके मुझे भी अपना सेवक बना लें।

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