Shriman Narayaneeyam

दशक 82 | प्रारंभ | दशक 84

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दशक ८३

रामेऽथ गोकुलगते प्रमदाप्रसक्ते
हूतानुपेतयमुनादमने मदान्धे ।
स्वैरं समारमति सेवकवादमूढो
दूतं न्ययुङ्क्त तव पौण्ड्रकवासुदेव: ॥१॥

रामे-अथ बलराम ने तब
गोकुल-गते गोकुल जाने पर
प्रमदा-प्रसक्ते प्रमदाओं में आसक्त होने पर
हूत-अनुपेत- बुलाया, नहीं आने पर
यमुना-दमने यमुना के, (उसके) दमन के लिए
मदान्धे मदान्ध हो कर
स्वैरं समारमति स्वेच्छा पूर्वक क्रीडातुर हो गए
सेवक-वाद्-मूढ: (अपने) सेवकों के (मिथ्या प्रशंसा) कहने से विमूढ बुद्धि वाले ने
दूतं न्ययुङ्क्त दूत को भेजा
तव आपके पास
पौण्ड्रक-वासुदेव पौण्ड्रक वासुदेव ने

बलराम ने गोकुल जा कर कामिनियों के साथ विहार करते समय यमुना को बुलाया। यमुना के नहीं आने पर उनका दमन करने के लिए मदान्ध बलराम स्वेच्छा पूर्वक क्रीडातुर हो कर जल में विहार करने लगे। उसी समय अपने सेवकों द्वारा अपनी मिथ्या प्रशंसा सुन कर विमूढ बुद्धि पौण्ड्रक वासुदेव ने आपके पास दूत भेजा।

नारायणोऽहमवतीर्ण इहास्मि भूमौ
धत्से किल त्वमपि मामकलक्षणानि ।
उत्सृज्य तानि शरणं व्रज मामिति त्वां
दूतो जगाद सकलैर्हसित: सभायाम् ॥२॥

नारायण:-अहम्- नारायण हूं मैं
अवतीर्ण इह-अस्मि भूमौ अवतीर्ण हुआ हूं यहां भूमि पर
धत्से किल त्वम्-अपि धारण करते हो निस्सन्देह तुम भी
मामक-लक्षणानि मेरे लक्षणों को
उत्सृज्य तानि छोड कर उनको
शरणं व्रज माम्-इति शरण आ जाओ मेरी' इस प्रकार
त्वां दूत: जगाद आपको दूत ने कहा
सकलै:-हसित: सभी के हंसते हुए
सभायाम् सभा में

'मैं नारायण हूं और यहां इस भूमि पर अवतरित हुआ हूं। निस्सन्देह तुम भी मेरे लक्षणों को धारण करते हो, किन्तु उनको छोड दो और मेरी शरण में आ जाओ।' दूत ने आपसे पौण्ड्रक का यह सन्देश कहा। इसे सुन कर सभा में सभी हंसने लगे।

दूतेऽथ यातवति यादवसैनिकैस्त्वं
यातो ददर्शिथ वपु: किल पौण्ड्रकीयम् ।
तापेन वक्षसि कृताङ्कमनल्पमूल्य-
श्रीकौस्तुभं मकरकुण्डलपीतचेलम् ॥३॥

दूते-अथ यातवति दूत के तब चले जाने पर
यावद-सैनिकै:-त्वं यादव सैनिकों के साथ आप
यात: ददर्शिथ गए (और) देखा
वपु: किल पौण्ड्रकीयम् शरीर निस्सन्देह पौण्ड्रक का
तापेन वक्षसि ताप से वक्षस्थल पर
कृत-अङ्कम्- किया था चिह्न
अनल्प-मूल्य- अमूल्य
श्री कौस्तुभं श्री कौस्तुभ का
मकर-कुण्डल मकर कुण्डल (पहने था)
पीत-चेलम् (और) पीले वस्त्र

दूत के चले जाने पर, यादव सैनिकों के साथ आप पौण्ड्रक का शरीर देखने के लिए गए। निस्सन्देह उसके वक्षस्थल पर ताप से श्री वत्स चिह्नित था । वह अमूल्य श्री कौस्तुभ धारण किए हुए था। उसने कानों में मकर कुण्डल थे और वह पीत वस्त्र भी धारण किए हुए था।

कालायसं निजसुदर्शनमस्यतोऽस्य
कालानलोत्करकिरेण सुदर्शनेन ।
शीर्षं चकर्तिथ ममर्दिथ चास्य सेनां
तन्मित्रकाशिपशिरोऽपि चकर्थ काश्याम् ॥४॥

काल-आयासं काले लोहे के
निज-सुदर्शनम्- अपने सुदर्शन को
अस्यत:-अस्य छोडते हुए इसके
काल-अनल-उत्कर- कालाग्नि किरणों को
किरेण सुदर्शनेन् विस्फुरित करने वाले सुदर्शन से
शीर्षम् चकर्तिथ शिर को काट डाला
ममर्दिथ च अस्य सेनां और कुचल दिया इसकी सेना को
तत्-मित्र-काशिप- उसके मित्र काशी के
शिर:-अपि चकर्थ शिर को भी काट कर
काश्याम् (भेज दिया) काशी में

पौण्ड्रक ने काले लोहे से बने अपने सुदर्शन को छोडा, तब आपने कालाग्नि की किरणों को विस्फुरित करने वाले अपने सुदर्शन से उसके शिर को काट दिया। उसके मित्र काशी के शिर को भी काट कर काशी पुरी भेज दिया।

जाल्येन बालकगिराऽपि किलाहमेव
श्रीवासुदेव इति रूढमतिश्चिरं स: ।
सायुज्यमेव भवदैक्यधिया गतोऽभूत्
को नाम कस्य सुकृतं कथमित्यवेयात् ॥५॥

जाल्येन मूर्खता के कारण
बालक-गिरा-अपि बालकों (के समान) वाणी से भी
किल-अहम्-एव निश्चय ही मैं ही
श्री-वासुदेव इति श्री वासुदेव हूं इस प्रकार
रूढमति:-चिरं स: दृढ बुद्धि वाला बहुत समय से वह
सायुज्यम्-एव सायुज्य ही
भवत्-ऐक्य-धिया आपसे एकाकार ध्यान से
गत:-अभूत् पा गया
क: नाम कौन भला
कस्य सुकृतं किसके पुण्यों को (जान सकता है)
कथम्-इति-अवेयात् कैसे इस प्रकार फलीभूत होंगे

अपनी मूर्खता के कारण, अथवा बालकों की सी अबोध बुद्धि वाले लोगों के कहने के कारण, 'निश्चय ही मैं ही वासुदेव हूं' बहुत समय से ऐसा विचार कर, आप में एकाग्र चित्त वाला पौण्ड्रक अन्त में सायुज्य मोक्ष ही पा गया। कौन जान सकता है कि किसका पुण्य कैसे फलीभूत होगा!

काशीश्वरस्य तनयोऽथ सुदक्षिणाख्य:
शर्वं प्रपूज्य भवते विहिताभिचार: ।
कृत्यानलं कमपि बाणरणातिभीतै-
र्भूतै: कथञ्चन वृतै: सममभ्यमुञ्चत् ॥६॥

काशी-ईश्वरस्य काशीराज के
तनय:-अथ पुत्र ने तब
सुदक्षिण-आख्य: सुदक्षिण नाम के
शर्वं प्रपूज्य सशङ्कर की सुचारु पूजा करके
भवते विहित- आपमें चलाया
अभिचार: अभिचार (जादू)
कृत्या-अनलं कृत्या अग्नि को
कम्-अपि किसी भी
बाण-रण-अति-भीतै:- बाण के संग्राम से भयभीत
भूतै: कथञ्चन वृतै: भूतों से किसी प्रकार घिरे हुए
समम्-अभ्यमुञ्चत् के साथ मोचन किया (कृत्या का)

काशीराज के पुत्र सुदक्षिण ने शङ्कर की सुचारु रूप से पूजा कर के, आप पर अभिचार चलाया और किसी कृत्या अग्नि को प्रकट किया। बाणासुर के संग्राम के समय शङ्कर के भयभीत भूत गणों को किसी प्रकार सम्मिलित किया और उनसे घिर कर उसने कृत्याग्नि का मोचन किया।

तालप्रमाणचरणामखिलं दहन्तीं
कृत्यां विलोक्य चकितै: कथितोऽपि पौरै: ।
द्यूतोत्सवे किमपि नो चलितो विभो त्वं
पार्श्वस्थमाशु विससर्जिथ कालचक्रम् ॥७॥

ताल-प्रमाण-चरणाम्- ताड के (वृक्ष के) समान पैरों वाली
अखिलं दहन्तीं सभी कुछ को भस्म करती हुई
कृत्यां विलोक्य कृत्या को देख कर
चकितै: आश्चर्य चकित
कथित:-अपि पौरै: कहे (सूचित किए) जाने पर भी पुरवासियों के द्वारा
द्यूत-उत्सवे द्यूत क्रीडा मे (लगे हुए)
किम्-अपि नो चलित: किसी प्रकार भी नहीं उद्यत हुए
विभो त्वं हे विभो! आप
पार्श्वस्थम्-आशु निकट में रखे हुए को शीघ्र
विससर्जिथ भेज दिया
काल-चक्रम् सुदर्शन चक्र को

ताड के वृक्ष के समान लम्बे पैरों वाली, सभी कुछ भस्म करती हुई कृत्या को देख कर पुरवासी आश्चर्य चकित हो गए और उन्होंने आपको इसकी सूचना भी दी। किन्तु द्यूत क्रीडा में संलग्न हे विभो! आप स्वयं उद्यत नहीं हुए, आपने निकट ही रखे हुए अपने सुदर्शन चक्र को भेज दिया।

अभ्यापतत्यमितधाम्नि भवन्महास्त्रे
हा हेति विद्रुतवती खलु घोरकृत्या।
रोषात् सुदक्षिणमदक्षिणचेष्टितं तं
पुप्लोष चक्रमपि काशिपुरीमधाक्षीत् ॥८॥

अभ्यापतति- आक्रमण करने पर
अमित-धाम्नि अनन्त तेजस्वी
भवत्-महा-अस्त्रे आपके महान आयुध के
हा हा-इति हा हा कार करती हुई
विद्रुतवती पलायन करती हुई
खलु घोर-कृत्या निस्सन्देह (उस) घोर कृत्या के
रोषात् सुदक्षिणम्- क्रोध से सुदक्षिण को
अदक्षिण-चेष्टितं तं नीच कर्मी उसको
पुप्लोष चक्रम्-अपि जला डाला, (सुदर्शन) चक्र ने भी
काशि-पुरीम्-अधाक्षीत् काशी पुरी को भस्म कर दिया

आपके महान और अनन्त तेजस्वी आयुध के आक्रमण करने पर कृत्या हा हाकार करते हुए पलायन कर गई। अपने क्रोध से उस भयानक कृत्या ने निस्सन्देह नीच कर्मा सुदक्षिण को भी जला डाला। आपके सुदर्शन चक्र ने भी काशीपुरी को भस्म कर दिया।

स खलु विविदो रक्षोघाते कृतोपकृति: पुरा
तव तु कलया मृत्युं प्राप्तुं तदा खलतां गत: ।
नरकसचिवो देशक्लेशं सृजन् नगरान्तिके
झटिति हलिना युध्यन्नद्धा पपात तलाहत: ॥९॥

स खलु विविद: वह ही विविद (जिसने)
रक्षोघाते राक्षसों का वध करने में
कृत-उपकृति: पुरा किया था उपकार पहले
तव तु कलया आपके अंशावतार से
मृत्युं प्राप्तुं मृत्यु पाने के लिए
तदा खलतां गत: उस समय दुर्जनता अपना कर
नरक-सचिव: नरकासुर का मन्त्री (वह)
देश-क्लेशं सृजन् प्रजा को कष्ट पहुंचाने लगा
नगर-अन्तिके नगर (द्वारका) के आस पास
झटिति हलिना तुरन्त बलराम के द्वारा
युध्यन्-अद्धा लडते हुए यथार्थत:
पपात-तल-आहत: गिर पडा हाथ से आहत हो कर

आपके रामावतार के समय विविद ने राक्षसों के संहार में आपकी सहायता की थी। वह आपके अंशावतार से मृत्यु प्राप्त करना चाहता था। उसने नरकासुर का मन्त्रित्व पा कर दुष्कर्म करने आरम्भ कर दिए, और द्वारका नगरी के आस पास ही प्रजा को संतप्त करने लगा। तुरन्त ही बलराम के साथ लडते हुए, हथेली के एक ही प्रहार से वह यथार्थत: गिर कर मर गया।

साम्बं कौरव्यपुत्रीहरणनियमितं सान्त्वनार्थी कुरूणां
यातस्तद्वाक्यरोषोद्धृतकरिनगरो मोचयामास राम: ।
ते घात्या: पाण्डवेयैरिति यदुपृतनां नामुचस्त्वं तदानीं
तं त्वां दुर्बोधलीलं पवनपुरपते तापशान्त्यै निषेवे ॥१०॥

साम्बं साम्ब को
कौरव्य-पुत्री-हरण- कौरवों की पुत्री के हरण (कर लेने) के कारण
नियमितं बन्दी (बना लिया)
सान्त्वना-अर्थी शान्त करने के लिए (कौरवों को)
कुरूणां यात:- कुरुओं के पास जा कर
तत्-वाक्य-रोष- उन लोगों की बातों से क्रोधित (हो कर)
उद्धृत-करिनगर: उखाड डाला हस्तिनापुर को
मोचयामास राम: (और) छोड दिया (साम्ब को) बलराम ने
ते घात्या: उन (कुरुओं) का वध करना चाहिए
पाण्डवेयै:-इति पाण्डवों को, इस प्रकार
यदु-पृतनां यदु सेना को
न-अमुच:-त्वं तदानीं नहीं भेजा आपने उस समय
तं त्वां दुर्बोधलीलं उन आपकी अज्ञात लीलाधारी की
पवनपुरपते हे पवनपुरपते!
ताप-शान्त्यै निषेवे संतापों की शान्ति के लिए पूजन करता हूं

साम्ब, कौरवों की पुत्री का हरण कर लेने के कारण कौरवों द्वारा बन्दी बना लिया गया। कौरवों को शान्त करने के लिए बलराम उनके पास गए, किन्तु उनकी आक्षेप पूर्ण बातों से क्रोधित हो कर उन्होंने हस्तिनापुर को उखाड डाला और साम्ब को मुक्त कर दिया। कौरवों का वध पाण्डवों के द्वारा होना चाहिए, इसी विचार से आपने उस समय यदु सेना नहीं भेजी। अज्ञात लीलाधारी, हे पवनपुरपते! संतापों की शान्ति के लिए मैं आपका पूजन करता हूं।

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